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स्वाधीनता आंदोलन में मगध वासियों का योगदान -राम रतन प्रसाद सिंह रत्नाकर – नवादा |

रवीन्द्र नाथ भैया |
प्राचीन मगध के गौरवमई इतिहास को यादगार बनाने के लिए वर्तमान के मगध प्रमंडल गया, नवादा, जहानाबाद, औरंगाबाद के नागरिकों ने गुलामी से मुक्ति और किसान मजदूरों का अपना राज्य के लिए संघर्ष किया था। शिक्षा के अभाव और कई ढंग के अंधविश्वास के बीच पुराने गया जिला वर्तमान मगध प्रमंडल में स्वाधीनता के लिए संघर्ष व्यवस्थित ढंग से 1917 से प्रारंभ हुआ। जब होमरूल के खिलाफ गया में आम सभा हुई। इसमें अंग्रेज सरकार के खिलाफ हसन इमाम और सच्चिदानंद सिन्हा और बजरंग दत्त शर्मा ने भाषण किया। इसके बाद 1919 में जलियांवाला बाग की घटना के खिलाफ में गया, नवादा, जहानाबाद ,औरंगाबाद में हड़ताल हुई और कार्यकर्ताओं ने अंग्रेज सरकार के खिलाफ विचार व्यक्त किए।
नागपुर कांग्रेस सम्मेलन में पारित प्रस्ताव के आरोप में मगध प्रमंडल के कई हिस्सों में आम सभा और नेताओं के भाषण हुए। इस बीच गया के रमना मैदान में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का भाषण सुनने बड़ी संख्या में लोग गया पधारे।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने नई जागृति पैदा की और बड़ी संख्या में कार्यकर्ता सड़क पर आने लगे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 1921 में सविनय अवज्ञा आंदोलन के तहत सरकारी कार्यालयों, शराब की दुकान और सरकारी उपाधि वापस करने का आह्वान के तहत पूरे गया जिला में कोर्ट कचहरी स्कूल का लोगों ने बहिष्कार किया।
गया के युवकों ने राष्ट्रवादी विचारधारा को सही रूप में स्थापित करने के उद्देश्य से नेशनल स्कूल की स्थापना श्री कृष्ण प्रकाश सेन सिंह के मकान में खोला गया इस बीच तिलक स्वराज फंड के नेताओं की एक टोली पुराने गया जिले के कई हिस्सों का दौरा किया। बिहार सरकार के पूर्व मंत्री अनुग्रह नारायण सिंह और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कृष्ण बल्लभ सहाय ने पूरे जिले में इस फंड के लिए दौरा किया। जिसमें पुराने गया जिला के लोगों ने तिलक स्वराज फंड में उदारता पूर्वक दान दिया था।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के गिरफ्तार हो जाने के बाद गया में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का सम्मेलन 1942 में हुआ। इस सम्मेलन की तैयारी समिति के अध्यक्ष बृज किशोर नारायण और महासचिव भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद चुने गए।
गया में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस सम्मेलन की अध्यक्षता देशबंधु चितरंजन दास ने किया और इसके आयोजन में देश के कई नेताओं ने भाग लिया। पंडित मोतीलाल नेहरु, हकीम अजमल खान, विट्ठल भाई पटेल को कौंसिल में प्रवेश के नाम से मतभेद के कारण स्वराज पार्टी का गठन करना पड़ा।
1924 में गया जिला बोर्ड के चुनाव में कांग्रेस ने भाग लिया और अनुग्रह नारायण सिंह जिला बोर्ड के अध्यक्ष चुने गए। 1930 में नमक सत्याग्रह का प्रभाव व्यापक रूप से गया जिले के गांवों और कस्बों पर पडा और बड़ी संख्या में नमक बनाने का काम कार्यकर्ताओं ने प्रारंभ किया।
नमक सत्याग्रह में बड़ी संख्या में नमक बनाते लोग बंदी बनाए गए। इस बीच गया में कांग्रेस का प्रांतीय सम्मेलन के मौके पर 400 कांग्रेसी कार्यकर्ता गिरफ्तार किए गए।
गया षड्यंत्र केस 1933 में हुआ। इस केस में गया के 16 युवकों को अभियुक्त बनाया गया। इसमें कई को 7 साल की सजा हुई और श्याम चरण पर्थवार, केशव प्रसाद, विश्वनाथ माथुर और बिहार सरकार के पूर्व मंत्री शत्रुघ्न प्रसाद सिंह को काला पानी की सजा सुनाई गई।
1935 से 1939 के बीच गया में कांग्रेस पार्टी, सोशलिस्ट पार्टी और किसान सभा के कार्यकर्ताओं ने एक होकर संघर्ष का आह्वान किया। गया जिला कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के अध्यक्ष लोकनायक जयप्रकाश नारायण चुने गए। स्वामी सहजानंद सरस्वती, यदुनंदन शर्मा जैसे किसान नेता का नवादा और जहानाबाद में व्यापक प्रभाव कायम हुआ। जयप्रकाश नारायण ,यदुनंदन शर्मा, कांग्रेसी नेता शत्रुघ्न प्रसाद सिंह, अनुग्रह नारायण सिंह के व्यक्तित्व का व्यापक प्रभाव कायम हुआ। इससे जागरण का शंख बजा और मगध प्रमंडल में स्वाधीनता आंदोलन गतिमान हो चला।
1939 में गया किसान सभा का सम्मेलन समाजवादी नेता आचार्य नरेंद्र देव की अध्यक्षता में हुई। इस किसान संगम ने किसान एकता को राष्ट्रवादी सोच में बदलाव और बड़ी संख्या में किसान स्वाधीनता आंदोलन में सहयोगी बने। 1940 में रेवरा में किसान सत्याग्रह हुआ। जिसमे स्वामी सहजानंद सरस्वती, यदुनंदन शर्मा, जयप्रकाश नारायण, आचार्य नरेंद्र देव ने हल चलाकर किसान जागरण का शंखनाद किया और किसान जागरण को स्वाधीनता आंदोलन के साथ जोड़ा।
1942 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने करो या मरो का नारा दिया था। इस विपलव्वादी महामंत्र ने देशवासियों को पूर्व स्वतंत्रता प्राप्ति के अंतिम संग्राम के लिए आह्वान किया था।
गया जिले में 1942 का करो या मरो अंग्रेजों भारत छोड़ो का व्यापक प्रभाव पड़ा और युवाओं की टोली ने कई स्थानों पर रेलवे लाइन उखाड़े और पोस्ट ऑफिस फुके। इस कारण यह एक जन आंदोलन बन गया व्यवहारिक ढंग से मानसिक तौर पर भी गया जिले के विभिन्न हिस्से में लोगों ने अपने आप को आजाद मान लिया। 1947 में भारत स्वाधीन हो गया।
स्वाधीनता आंदोलन को गतिमान बनाने में मगध प्रमंडल का योगदान महत्वपूर्ण है।
मगध प्रमंडल में स्वाधीनता आंदोलन को जीवंत बनाने में छोटे किसान, छोटे व्यापारी वर्ग के युवाओं की भूमिका पगडंडी के साधक के रूप में यादगार है। राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर ने इन कार्यकर्ताओं को अगणित लघु दीप कहकर महिमामंडित किया है।
बुझी अस्थियां बारी बारी
छिटकाई जिनने चिगारी
जो चल गए पुष्प बेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल
कलम आज उनकी जय बोल।
मगध वासियों में स्वाधीन होने का जज्बा कुछ इस कदर चढ़ा कि एक ही परिवार के पूरे परिवार स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े। उन्हीं में वर्तमान नवादा जिला के मकनपुर निवासी स्वर्गीय मिश्र सिंह, नुनु सिंह, और लालो विद्यार्थी ने एक साथ मिलकर अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई लड़ी। जिसमें दो भाई को जेल जाना पड़ा तो एक सबसे छोटा भाई लालो विद्यार्थी फरार रहकर गया से प्रकाशित बागी नामक पत्रिका आंदोलनकारियों के पास पहुंचाते रहे। एक चचेरा भाई रामरक्षा सिंह को भी आंदोलन का हिस्सा होने के कारण जेल जानी पड़ी। सभी भाइयों के विरुद्ध सरकारी काम में बाधा डालने, पोस्ट ऑफिस थाने में आग लगाने और रेलवे स्टेशन पर तोड़फोड़ करने का आरोप लगाया गया था।

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